संघर्ष और सफलता
डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"
(उप संपादक मदन मोहन सत्य हिंदी टीवी)
अकेला तो संघर्ष के दौर में था,
जब संघर्ष सफल हुआ,
तो काफि़लो का दौर था।
हर कोई अपना बता रहा था, मुझे।
जो कल तक हर कसौटी पर आजमा रहा था, मुझे।
मैं भी हैरत से ,
मुड़ मुड़ कर देख रहा था, हरेक को।
कल तक तो,
मैंने यहां नहीं देखा था, किसी एक को।
आज यहां,
अपनों की भीड़ लगी है,
एक भी सूरत,
इनमें मेरी जानी पहचानी नहीं है।
पता नहीं,
कहां-कहां से आकर पूछते हैं, मेरी खैरियत।
निसंदेह!
अब इनसे मेरा कोई मेल नहीं है,
क्योंकि कोरे कागजों को पढ़ना,
कोई खेल नहीं है।
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